उसे अपनी कोख से बेटियां पैदा करने का सुख तो नहीं मिला लेकिन बेटियों को पाल कर वो अपने मातृत्व का साया दो बेटियों पर जरूर डाले हुए है। ये कहानी बनारस के गुड़िया किन्नर की है। आमतौर पर किन्नर शब्द सुनते ही हमारे ख्याल से नर्म एहसासों का हिस्सा खुद ब खुद अलग हो जाता है। हमें लगता है कि किन्नर समाज में तिरस्कार के लिए बने हैं और हमें उनका तिरस्कार ही करना चाहिए। बनारस की गुड़िया किन्नर आपके इन ख्यालों की तासीर बदल देगी। किन्नर होकर भी उन लोगों से बेहतर है जो कोख में अपने बेटियों को मार कर अपनी मर्दानगी का दावा करते हैं। आइए अब आपको गुड़िया की पूरी दास्तान सिलसिलेवार बताते हैं।
गुड़िया नाम की किन्नर का जब जन्म हुआ तो जाहिर सी बात है कि पूरे परिवार में कोहराम मच गया। सामाज के तानों के बारे में सोच कर परिवार परेशान हो उठा। हालांकि इसके बाद मां बाप ने गुड़िया को सोलह साल तक घर में ही रखा और पाल पोसकर बड़ा किया। परिवार प्यार तो दे सकता था लेकिन मोहल्ले के तानों पर ताले नहीं लगा सकता था। गुड़िया का स्वाभिमान भी उसे ताने सुनते रहने देने की इजाजत नहीं देता। लिहाजा 16 की उम्र गुड़िया घर से भाग गई। बाद में वो किन्नरों के साथ मंडली में शामिल हो गई। तीन साल बाद घर लौटी तो इस बात की इजाजत लेने की अब वो किन्नर मंडली में ही रहकर घर घर बधाइयां गाएगी। हालांकि मां बाप के लिए ये फैसला मुश्किल भरा रहा होगा लेकिन उन्होंने इजाजत दे दी।
कुछ दिनों तक मंडली में गाना बजाना करने के बाद गुड़िया का वहां भी परेशानी होने लगी। दरअसल बचपन में गुड़िया जल गई थी। लिहाजा कमर से लेकर पांव तक हिस्सा बदसूरत हो गया था। जले के इस बड़े से निशान के साथ गुड़िया को मंडली में भी दिक्कतें आने लगीं। आखिरकार गुड़िया मंडली से भी दूर हो गई।
आपको ये याद दिलाना जरूरी है कि इस उम्र में गुड़िया किस मनोदशा से गुजर रही होगी ये समझ पाना मुश्किल है। लेकिन इस सबके गुड़िया ने हार नहीं मानी।
मंडली से अलग होकर गुड़िया ने ट्रेन में भीख मांगना शुरु किया। लेकिन गुड़िया का स्वाभिमान उसे ये भी नहीं करने दे रहा था। लिहाजा गुड़िया ने कुछ और करने को सोचा। गुड़िया वापस लौटी। अपने घर वालों से सलाह मशविरा कर किसी तरह अपना एक घर बनवा लिया। पेट पालने के लिए उसने घर में पॉवरलूम लगवा लिए।
इस बीच गुड़िया को अकेलापन खलता रहा। इस अकेलेपन को दूर करने के लिए गुड़िया ने दो लड़कियों को गोद लिया। इनमें से एक बच्ची दिव्यांग है। दूसरी लड़की स्कूल जाती है। गुड़िया उसको अच्छी शिक्षा दीक्षा दिलाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। अब वो अपनी बड़ी ‘बेटी’ को डाक्टर बनाना चाहती है।
गुड़िया समाज का वो चेहरा हैं जो अपने अंधेरों के बीच उजले लिबास में दूर से दिख जाता है। गुड़िया इस समाज के दोहरे चरित्र के खिलाफ चुपचाप खड़ी एक इमारत सी हैं।
और हां, गुड़िया की दो बेटियों के नाम भी याद रखिएगा, एक है नरगिस और दूसरी है जैनम। क्या पता कब किससे कहां मुलाकात हो जाए।