न जाने ये कौन सा दौर है जब स्कूलों की इमारतों को दिलचस्प बनाया जाता है। पढ़ाई है तो जरूरी लेकिन पढ़ने के लिए स्कूलों तक कोई नहीं आना चाहता। खैर, छोड़िए। एक स्कूल के रंग रोगन की बात बताते हैं। ये स्कूल सरकारी है और दूर से देखिए तो यूं लगेगा मानों क्लास रूम्स के सामने नहीं बल्कि प्लेटफार्म पर खड़ी किसी ट्रेन के सामने खड़े हों।
स्कूल के प्रधानाचार्य पुरुषोत्तम दास गुप्ता का कहना है कि उन्होंने स्कूल का रंग-रोगन ट्रेन की तरह इसलिए करवाया है ताकि बच्चों को यहाँ पढ़ने के लिए आकर्षित किया जा सके। लोग सरकारी स्कूलों की खस्ताहाल हालत देख कर ही प्राइवेट स्कूल का रुख करते हैं।
पूरे स्कूल को एक ट्रेन और रेलवे स्टेशन की तरह रंगा गया है। स्कूल के 5 कक्षों को रेलवे ट्रेन के डिब्बों की तरह रंग गया है तथा अंतिम कक्षा की दीवार को ट्रेन के अंतिम डिब्बे की तरह ही हू-बहू रंग गया है। इसके साथ ही स्कूल प्रिंसिपल के कमरे को ट्रेन का इंजन बनाया गया है। जिससे कि ये पूरी एक ट्रेन की तरह ही लगता है। इसके अलावा स्कूल के बरामदे को भी बिलकुल प्लेटफ़ॉर्म की तरह ही पिलर आदि के पैटर्न से सजाया गया है। दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि किसी प्लेटफ़ॉर्म पर ट्रेन खड़ी हो। स्कूल की चार दीवारों को भी माल गाड़ी के रंग में रंग गया है।
चार साल पहले यह स्कूल पीले रंग में रंगा हुआ था जिसकी हालत अच्छी नहीं थी लेकिन इस स्कूल को रेशम देवी नानक चंद मित्तल फाउंडेशन ने गोद ले लिया और धीरे-धीरे इसकी पूरी सूरत ही बदल दी। फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. एस.सी. मित्तल ने अपने साक्षात्कार में कहा “जब हमने इस स्कूल को अपनाया था, तो यहाँ केवल 10 कक्षाएं थीं और एक भी शौचालय नहीं था। चार साल में हमने नई कक्षाओं, बरामदे, शौचालयों और छतों के निर्माण और मरम्मत पर लगभग 40 लाख रुपये खर्च किए हैं।”
स्कूल नये सत्र के लिए पूरी तरह तैयार है, स्कूल प्रशासन का कहना है कि स्कूल में बदलाव के बाद से बच्चों के मन में इस स्कूल में पढ़ने की उत्सुक्ता बढ़ रही है। बच्चे बहुत ज्यादा उत्साहित है, इस सत्र में छात्रों की अच्छी-खासी संख्या देखने को मिल सकती है। वैसे अभी तो यहाँ फोटो खींचने वालों का आना-जाना लगा रहता है।