बदलाव यहाँ भी …….. 

बहुत बहुत अच्छा हुआ की संजय निरुपम को अपनी ही नही देश के हर नेता की औकात का पता चल गया…..उन्हें ही नही देश के हर नेता को अपनी औकात का पता चल गया…..जिस तरह से मुंबई के लोगों ने संजय निरुपम को भाग जाने पर मजबूर कर दिया इसी तरह देश के तमाम नेताओं के साथ भी करना चाहिए ….लेकिन देश के उन तमाम पढ़े लिखे लोगों को भी सोचना चाहिए की वो देश को दे क्या रहें हैं…..मैं मानता हूँ की आप बहुत कुछ दे रहें होंगे पर शायद आप अपना वोट नही दे रहें हैं…..और जब तक आप वोट नही देंगे इस समस्या का समाधान दूंढ़ पाना बहुत मुश्किल है…हम इन नेताओं को वैसे इन्हे नेता कहना ग़लत है…यह लोकतंत्र की नौकरी कर रहें हैं और सांसद या विधायक हैं लेकिन नेता तो नही हैं…बहरहाल बात वोट की हो रही है तो उसी की हो …… पढ़े लिखे लोगों के लिए वोट देने जाना एक जहमत के जैसे होता है…..वो तो वोटिंग वाले दिन को छुट्टी के दिन की तरह मानते हैं …..इस दिन लोग अपने नाते रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं….इंजॉय करते हैं….पर वोट नही देते हैं………ए मेरे वतन के लोगों वोट दीजिये और इन सांसदों और विधायकों को नेता बना दीजिये …… बाकि आगे के ब्लॉग में जय हिंद