Normal
0

false
false
false

EN-IN
X-NONE
HI

/* Style Definitions */
table.MsoNormalTable
{mso-style-name:”Table Normal”;
mso-tstyle-rowband-size:0;
mso-tstyle-colband-size:0;
mso-style-noshow:yes;
mso-style-priority:99;
mso-style-parent:””;
mso-padding-alt:0cm 5.4pt 0cm 5.4pt;
mso-para-margin-top:0cm;
mso-para-margin-right:0cm;
mso-para-margin-bottom:10.0pt;
mso-para-margin-left:0cm;
line-height:115%;
mso-pagination:widow-orphan;
font-size:11.0pt;
font-family:”Calibri”,”sans-serif”;
mso-ascii-font-family:Calibri;
mso-ascii-theme-font:minor-latin;
mso-hansi-font-family:Calibri;
mso-hansi-theme-font:minor-latin;
mso-bidi-font-family:Mangal;
mso-bidi-theme-font:minor-bidi;
mso-fareast-language:EN-US;
mso-bidi-language:AR-SA;}

आम आदमी पार्टी के मंत्री संदीप कुमार को लेकर
पार्टी के भीतर कुछ ऐसी चर्चाएं चल रहीं हों तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कुमार
विश्वास की कविताओं में यकीन रखने वाली पार्टी के नेताओं से यही उम्मीद की जा सकती
है। आम आदमी पार्टी के शैशवकाल में ही उसके जन्मदाताओं ने पार्टी की ऐसी की तैसी
कर ऱखी है और इसके बाद सुनने सुनाने के लिए पहले से ही कविता तैयार रखी है।
संदीप कुमार, सोमनाथ भारती, जितेंद्र तोमर जैसे
नाम न सिर्फ आम आदमी पार्टी के लिए कलंक बन गए हैं बल्कि उस पूरे मिडिल क्लास को
तकलीफ दे रहें हैं जो अन्ना के आंदोलन से उम्मीद बांधे हुए थे। अन्ना आंदोलन की
बाईप्रोडक्ट आम आदमी पार्टी ने देश के नब्बे फीसदी लोगों की उम्मीदों को यमुना के
काले पानी में डुबा कर खत्म कर दिया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जिस तरह से
सुचिता और पारदर्शिता के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई थी उन सभी का इस पार्टी ने
पिंडदान करा दिया।
गैरपरंपरागत राजनीति की शुरुआत करने का दावा
करने वाली पार्टी को दिल्ली की जनता ने ऐतिहासिक बहुमत दिया। लगा कि देश में एक नई
क्रांति आ रही है। जो शायद मनोज कुमार वाली क्रांति से अलग होगी। लेकिन अरविंद
केजरीवाल एंड पार्टी ने ऐसा बेड़ा गर्क किया कि कहना ही क्या।
वैसे कुमार विश्वास की जिस कविता की एक लाइन को
इस लेख के शीर्षक के तौर पर प्रयोग किया गया है आप उस कविता का कुछ हिस्सा और पढ़
लेते तो शायद आम आदमी पार्टी पर इतना भरोसा नहीं करते। लीजिए पढ़ लीजिए –
भ्रमर कोई कुमुदनी
पर मचल बैठा तो हंगामा

हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा

कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा
कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा

जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
ये जज्बातों, मुलाकातों
हंसी रातों का हंगामा

जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब
ये हंगामे की रातें हैं या है रातों का हंगामा