राधेश्याम मिश्र को आप जानते हैं?
नहीं जानते?
जानेंगे भी कैसे? वैसे जानकर करेंगे भी क्या?
राधेश्याम नंगे बदन गंगा किनारे टहलते हुए नजर आ जाएंगे। वो कोई सेलिब्रिटी एटीट्यूड नहीं हैं। उनके चेहरे पर लाइमलाइट सा ईगो भी नहीं नजर आता। लेकिन हैं अजीब शख्स। एकदम बनारसी जैसे। बनारस में गंगा किनारे टहलने के दौरान उनके चेहरे को ध्यान से देखेंगे (ध्यान से नहीं भी देखेंगे तो भी) तो गंगा की बदहाली से उपजा तनाव उनके चेहरे के हर हिस्से से नजर आ जाएगा। चेहरे पर तनाव का ये खिंचाव तब और बढ़ जाता है जब वो गंगा किनारे बने अस्सी घाट की उस जगह पर पहुंचते हैं जहां देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फावड़ा चलाया था। राधेश्याम मिश्र एकाएक बेचैन हो जाते हैं। वो एक समय में कई प्रतिक्रियाएं करने की कोशिश करने लगते हैं। जाहिर है उनका धैर्य बहुत हद तक उनका साथ छोड़ देता है। राधेश्याम गंगा की ओर बढ़ना चाहते हैं। गंगा के पानी से आचमन को जी कर रहा है।लेकिन गंदला कीचड़ नुमां पानी उन्हें उनकी आस्था से भरे श्लोकों के उच्चारण से पहले सिस्टम की नाकामी, निकम्मेपन, झूठ को गालियां देने पर विवश कर दे रहा है। इसी बेचैनी में वो भी एक झटके में याद दिलाते हैं कि ये वही जगह है जहां प्रधानमंत्री ने फावड़ा चलाया था और ये उम्मीद जगाई थी कि अब गंगा साफ हो जाएगी।
गंगा को साफ करने की बात तो छोड़िए राधेश्याम मिश्र को अब गंगा तक पहुंचने के लिए भी अधिक दूरी तय करनी पड़ रही है। गंगा हैरतअंगेज रूप से घाटों से दूर जा रही है। गंगा में पानी का प्रवाह बेहद कम हो चुका है। गंगा की चौड़ाई सर्दियों के मौसम में भी बेहद कम है। राधेश्याम मिश्र को याद नहीं आता कि उन्होंने गंगा को सर्दियों में इतने संकरे पाट में बहते हुए कभी देखा हो। राधेश्याम उन करोड़ों लोगों में से एक हैं जो एक अस्पताल में एडमिट अपनी मां को हर बार एक नए अस्पताल में ये सोचकर एडमिट कराते हैं कि मां ठीक हो जाएगी। लेकिन हर बार मां की हालत पहले से अधिक खराब हो जाती है।
राधेश्याम मिश्र जल्दी में हैं। मानों उन्हें गंगा के पानी से आचमन करने की जल्दी है। वो एक ऐसी जगह की तलाश में निकलना चाहते हैं जहां उन्हें उनके बचपन की गंगा मिल जाए। बनारस में उनकी ये तलाश कब पूरी होगी ये हमें नहीं पता।
गंगा के हालात पिछले तीन साल में भी उसी तेजी से खराब होते रहे जितने तेजी से पिछली सरकारों में होते रहे हैं। ये लिखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये समझा जा सके कि गंगा को बतौर ब्रांड इस्तमाल करने वाली सरकारें भी गंगा की सफाई के नाम पर सिर्फ योजनाएं शुरू कर पाईं और मंत्रालय का ढांचा खड़ी कर पाईं।
हमें लगता है राधेश्याम मिश्र को आपको देखना चाहिए और उनकी बेचैनी को महसूस करना चाहिए। बनारस के वरिष्ठ टीवी पत्रकार अजय सिंह की ये वीडियो रिपोर्ट देखिए।