उत्तराखंड के सुदूर पहाड़ों की गुफाओं में बनी शिवलिंग नुमां आकृतियां सैकड़ों वर्षों तक मौसम में हुए बदलावों का लेखा जोखा समेटे हुए हैं। इस बात का खुलासा हाल ही में हुई एक रिसर्च में हुआ है। इस शोध की मदद से पिछले सैंकड़ों सालों में हुए जलवायु परिवर्तन का न सिर्फ हिसाब किताब मिल रहा है कि बल्कि भविष्य के मौसम का पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है।
कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के रिसर्च स्कॉलर अनूप कुमार सिंह ने हाल ही में रानीखेत के करीब की गुफाओं का भूगर्भीय नजरिए से आकलन किया। इस दौरान उन्हें कुछ गुफाओं में शिवलिंग नुमां आकृतियां मिलीं। ये आकृतियां प्राकृतिक रूप से बनी थीं। इन्हें भूविज्ञान की भाषा में स्टैगलाइट या स्टेलेग्टाइट कहतें हैं। सामान्य रूप से इसे प्राकृतिक शिवलिंग कहते हैं।
मुख्य रूप से चूना पत्थर से बनने वाली ये शिवलिंग नुमां आकृतियां मौसम में आए बदलावों की जानकारी का स्रोत हैं। अनूप सिंह ने इन शिवलिंग नुमां आकृतियों से मौसम में आए बदलावों का पता लगाया। ये आकृतियां हर साल होने वाली बारिश, अतिवृष्टि और हिमपात और सूखा तक की जानकारी अपने अंदर समेटी हुईं हैं। इस शोध से पता चला है कि वर्षों पहले इस इलाके में निश्चित अंतराल पर भयानक सूखा भी पड़ा।
दरअसल इन शिवलिंगों की ऊंचाई हर साल पानी बरसने के साथ बढ़ती है। इसी के साथ इन शिवलिंगों में एक वलय या रिंग का निर्माण भी हर मौसम के साथ होता है। अनूप सिंह ने अपने शोध में शिवलिगों पर बने इन्हीं रिंग्स का गहन अध्ययन किया। मुख्य रूप से इनका अध्ययन यूरेनियम थोरियम डेटिंग और ऑक्सीजन – कार्बन आइसोटोप्स के आधार पर किया गया। इस शोध के लिए अनूप सिंह को हाल ही में उत्तराखंड के राज्यपाल ने गवर्नर्स अवार्ड से भी नवाजा है।
इस शोध से क्या होगा लाभ
अनूप सिंह का ये शोध कई माएने में खास है। शिवलिंगों के अध्ययन से मिली जानकारी मौसम का पूरा चक्र समझा सकती है। वर्षों पहले जलवायु परिवर्तन की जानकारी से भविष्य में होने वाले बदलावों का अनुमान लगाया जा सकता है। हिमालयी क्षेत्रों में बनने वाले इन शिवलिंगों के अध्ययन से दक्षिणी पश्चिमी मानसून और पश्चिमी विक्षोभ की सटीक जानकारी एकत्र की जा सकती है। पश्चिमी विक्षोभ भारत के उत्तर क्षेत्र में होने वाली गेंहू की फसल को प्रभावित करता है।
पड़ सकता है सूखा
अनूप सिंह ने हिमालयी क्षेत्रों में बने इन शिवलिगों के अध्ययन से 330 सालों का लेखा जोखा तैयार किया है। इसके आधार पर अनूप सिंह ने आशंका जताई है कि वर्ष 2020 और 2022 में उत्तर भारत के इलाकों में भयंकर सूखे के हालात पैदा हो सकते हैं। अनूप सिंह की माने तो उत्तर भारत पिछले 330 सालों में 26 बार सूखे का सामना कर चुका है। इस शोध के सामने आने के बाद ये साफ हो चला है कि अगर हमने अपनी नदियों, तालाबों, जल स्रोतों को नहीं बचाया तो हालात बेहद खराब हो जाएंगे।