आज मन बहुत परेशान है…..बार बार पुण्य प्रसून बाजपाई का एक इंटरव्यू जेहन में आ रहा है…यह इंटरव्यू उन्होंने हालाँकि लगभग एक साल पहले एक वेब मैगजीन को दिया था…..लेकिन उसकी याद आज भी मुझे एकदम ताज़ा है…दरअसल उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा था की आज के पत्रकारों को शीशे के ऑफिस में बैठकर दुनिया देखने की आदत है….उन्हें अच्छी सैलरी चाहिए लेकिन पत्रकारिता नही करनी है…..मैं अभी नेशनल मीडिया में नया हूँ..हालाँकि जिस मीडिया में मैं हूँ वोह भी अभी इस देश के लिए पुराणी नही कही जा सकती है….जाहिर है बात इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की हो रही है….मैंने एस पी सिंह को बहुत नही जाना लेकिन पुण्य प्रसून बाजपाई को थोड़ा बहुत देख रहा होऊँ…भी एस पी सिंह के सहयोगी रहें हैं….सो इन्ही से कुछ पुरानी होती इस नई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देखने के प्रयास कर रहा हूँ…..खैर बात दूसरी ओरे ले चलता हूँ….मुझे नेशनल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जितना भी अनुभव हुआ उसमे मुझे अच्छे कम बुरे अनुभव अधिक मिले…इससे मेरा सौभाग्य कहिये या दुर्भाग्य मैं उत्तर प्रदेश के एक शहर वाराणसी में अपना पहला एक्सपेरिएंस लिया…जिस चैनल में था उससे रिलौंच किया गया था…मैं ख़बरों के लिए परेशान रहता था….फील्ड में और भी कई लोग थे…कुछ ख़ुद काम करते और कुछ काम करवाते थे….कह सकते हैं की वोह ठेके पर पत्रकारिता करवाते थे….मैंने पत्रकार बनने के लिए ज्यादा नही लेकिन थोड़ा तो प्रयास ज़रूर किया था…पर जब इस फील्ड में आया और अपने साथ और लोगों को देखा तो बहुत दुःख हुआ…यह दुःख आज भी जिंदा है…बल्कि और गहरा होता जा रहा है….दरअसल मैं जिन लोगों के देख रहा हूँ जो कहीं से पत्रकार बनने के कहीं भी लायक नही है..मैं यह नही कहता की मैं बहुत जानकार हूँ लेकिन पत्रकारिता की आत्मा के प्रति ज़रूर इमानदारी बरतने की कोशिश करता हूँ…पिछले कुछ दिनों में एकायक आई पत्रकारों की बाढ़ ने इसका बंटाधार कर दिया….मैं आपको एक वाकया बताता हूँ..बात मुहर्रम की है….ताजिया बहाने के दौरान कुछ तनाव हो गया था…हम सब मौके पर पहुंचे थे…तभी एक ताजिया गंगा में बहाए जाने के लिए लाया गया…हम सभी ने आपने कैमरा निकाल लिए…कैमरा देख कर भीड़ एकायक भड़क गई जोरदार नारेबाजी होने लगी…..हम लोगों में से कुछ ने अपना कैमरा बंद कर दिया…पर एक उत्साही ने अपना कैमरा बंद करना उचित नही समझा उसे कुछ एक्शन शॉट्स चाहिए थे ….हमने काफी मना किया पर वोह थोडी देर तक नही माना आख़िर वोह सबसे तेज़ चैनल के लिए ठेके पर पत्रकारिता कर रहा था..यह हमारी जर्नलिज्म का कैसा रूप है यह आपको बताने की ज़रूरत नही है…यह हमारी गैरजिम्मेदाराना पत्रकारिता का गन्दा चेहरा है..जहाँ विजुअल्स ज़रूरी है आदर्ष नही…..मन एक बात और बात से दुखी है वोह है एस क्षेत्र में आ रहे लोगों को लेकर…इनमे से ज्यादातर पत्रकारिता के मूलभावना से परिचित नही है..वोह महज अपना पेट पलने के लिए इस काम को करतें हैं….इसी के चलते वोह कई ऐसे काम करतें हैं जो इस क्षेत्र की आत्मा को तार तार करता है
सवाल उठता है की क्या ऐसे लोगों को इस क्षेत्र में आने से रोकना चाहिए….क्या इस क्षेत्र में आने के लिए एक सिस्टम होना चाहिए ….?
बतुह शानदार, तुम्हारी कल्पना शक्ती की कल्पना हम लोग नही कर सके थे।