Uncategorized लिख दिया पेशावर By Ashish Tiwari - December 17, 2014 3009 लिख दिया पेशावर दर्द, आंसू, चीख लिखना था सन्नाटा लिख दिया पेशावर । मौत, जुल्म, जिंदगी लिखना था जज्बात लिख दिया पेशावर । कॉपी, पेंसिल, हरा लिबास लिखना था इम्तहान लिख दिया पेशावर । जनाजा, कब्र, मय्यत लिखना था मातम लिख दिया पेशावर । बेबसी, बेसबब, बदहवास लिखना था बारूद लिख दिया पेशावर ।।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (19-12-2014) को "नई तामीर है मेरी ग़ज़ल" (चर्चा-1832) पर भी होगी।—सादर…!डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Reply
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (19-12-2014) को "नई तामीर है मेरी ग़ज़ल" (चर्चा-1832) पर भी होगी।
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सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ….
लगा दिया एक काला दाग़ जो कभी नहीं हटेगा!