अभी हाल ही में भारतीय टीवी जगत के एक अजीबो गरीब शो ख़त्म हुआ है….इस शो का क्या कांसेप्ट क्या था, क्यों था मुझे कुछ समझ नहीं आया.मैन यह नहीं कहता की आपको भी नहीं आया होगा…. दरअसल मै बात कर रहा हूँ राखी के स्वयंवर की.अब यह स्वयंवर हो चुका है राखी सावंत ने अपना दूल्हा चुन लिया है……लेकिन अभी शादी नहीं करेंगी…बाद में करेंगी या नहीं पता नहीं…लेकिन इस तरह से एक मीडिया पुत्री की शादी का ड्रामा देखकर हैरानी हुयी….मुझे लगता है की यह ड्रामा पूरी तरह से खुद को औरों की नज़रों में लाने के लिए किया गया…चाहें वोह चैनल रहा हो या फिर राखी सावंत…हैरानी है की राखी को जिस दिन अपना दूल्हा चुनना था उस दिन चैनल की टी आर पी सबसे अधिक रही..चैनल का तो काम हियो गया…पूरे प्रोग्राम के दौरान भी राखी ऐसी उलजुलूल हरकतें करती रहीं जिसके चलते राखी और चैनल दोनों जनता की नज़रों में बने रहे….कुछ लोग इस तरह के प्रोग्राम्स को नारी सशक्तिकरण से जोड़ कर भी देख रहें हैं….उनका मानना है की राखी एक खुले विचारों वाली लड़की हैं…और वोह अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीने में यकीन रखती हैं….और उन्होंने अगर अपना स्वयंवर आयोजित किया तो वोह कहीं से गलत नहीं था….यह बिलकुल सही है…और ऐसे कार्यक्रम भारतीय महिला की लगातार मजबूत होती स्थिति को दर्शातें हैं….हालाँकि वोह मेरे इस बात का जवाब नहीं दे पाए की राखी ने तुंरत शादी क्यों नहीं की? वहीँ इस मुद्दे पर कुछ लोग बिलकुल जुदा राय रखतें हैं…वैदिक रीती रिवाजों से नारियों को शिक्षित करने वाले एक कन्या महाविद्यालय की प्राचार्य आचार्य मेधा इस तरह के आयोजन को एक भोंडा प्रदर्शन बताती हैं….जब मैंने उनसे इस बारे में उनकी राय जाननी चाही तो वोह पहले थोड़ा मुस्कुरायीं…दरअसल वोह टी वी बहुत ही कम देखती हैं..लेकिन उन्होंने राखी के स्वयंवर के कुछ एपिसोड गलती से देख लिए थे..वोह मानो फट पड़ी…आचार्य मेधा इस तरह के टीवी प्रोग्राम्स को कहीं से भी भारतीय नारी के लिए उचित नहीं मानती हैं…वोह यह ज़रूर मानती हैं की हमारे समाज में औरतें स्वयंवर कर अपना दुख चुनती रहीं हैं…..लेकिन तब के स्वयंवर ना सिर्फ बेहद गंभीरता से हुआ करते थे वहीँ इनमे दुल्हे के चारत्रिक विशेशतावों पर अधिक ध्यान दिया जाता था….यह बात राखी के स्वयंवर में कहीं नहीं दिखी…राखी फिनल राउंड के दुल्हों के घर घर घूमती रहीं….उनकी शिकायतें करती रहीं…क्या यही है एक भारतीय नारी….
यकीनन यह यह एक चिंतनीय विषय है…गार्गी, लोपा के देश में आज भी कई ऐसी महिलाएं हैं जो औरों को राह दिखा सकती हैं…हाँ यह ज़रूर है की वोह शायद राखी सावंत की तरह स्वयंवर ने रचा सकें….वैसे चलते चलते आप से एक और बात कहना चाहता हूँ….क्या स्वयंवर का नाम सुनते ही आप के मन में राम और सीता का प्रतिबिम्ब नहीं उभरता है? क्या करेंगे? टीआरपी बटोरने के चक्कर में कुछ अच्छी बातों को भूलना पड़ता है………