गैंग्स ऑफ वासेपुर देखे हैं? नहीं भी देखे तो क्या कर लेंगे।
लेकिन शानदार, जबरदस्त तो सुने ही होंगे। नहीं भी सुने तो क्या कर लेंगे।
वैसे एक बात समझ लो कि ये जो आदत पड़ी है ना कि चालू का टिकट लीजिए और स्लीपर के डिब्बा (डब्बा) में घुस के पेपर बिछा लीजिए ऐसा वैसा अब बिल्कुल नहीं चलेगा। टीटी आया तो सौ दो सौ पकड़ाया और दिल्ली से दरभंगा कॉलर चढ़ाए चले आए। गांव में भी गाते फिर रहे कि स्लीपर में रिजर्वेशन करा के आए हैं। ये सब बिल्कुल बंद कर दीजिए। अब भौकाल टाइट करने का समय नहीं न रह गया है। अब देश के लिए कुछ करने का समय आ गया है। सत्तर साल से आपकी पीढ़ियों ने तो कुछ किया नहीं। सरकार मुंह में खाना डालती रही और सबकुछ चलता रहा। अब बिल्कुल नहीं चलेगा। अब तो देश में सिर्फ बुलेट ट्रेन चलेगी। हन्न, हन्न….हन्न…हन्न….हन्न….
भना भना निकलेगी इधर से उधर। अभी शुरुआत में अहमदाबाद से मुंबई है लेकिन जल्दी ही दिल्ली से मुगलसराय, पटना, मोतिहारी, हावड़ा भी दौड़ने लगेगी ऐसा सोचा जा सकता है। लेकिन दौड़े कैसे? जब तक लोग नहीं सुधरेंगे तो चलाएं कैसे। ना ट्रेन में बैठने का सऊर ना लेटने। गेट पर बैठ कर पूरा दिन काट देते हैं और पाखाना के दरवाजे पर बैठे पूरी रात। अब ऐसे तो बुलेट ट्रेन में बैठने को क्या उधर देखने को भी नहीं मिलेगा। होली दिवाली में दिल्ली वाले डेरा पर से गांव निकलने के लिए चार महीना पहले ही टिकट बुक करा लेते हो। ये जानते हुए भी कि तुम्हारे एक टिकट पर तुम्हारे गांव और आसपास के गांव के चार और लोग वेटिंग टिकट पर तुम्हारे साथ ही लटक लेंगे। चार महीना पहले टिकट करा के भी तो डेढ़ से दो दिन का सफर का तुम्हे गमछा बिछा कर ताश खेलते हुए ही बिताना है। ना ठीक से सोने को मिलेगा ना पूरा पैर ही फैला पाओगे। दिल्ली से चलते समय रास्ते के लिए जो लाई चना बड़ी वाली पॉलिथीन में बांध कर लाए थे वो जल्दी ही खत्म हो जाएगा। स्प्राइट की हरी बोतल में बनियाइन पहने हर स्टेशन पर हैंडपंप का ताजा पानी भरने की आदत। खीरा कटवा के नमक लगवा के प्लेटफार्म पर खाने की आदत और ट्रेन के रेंगने के बाद उसमें चलते हुए चढ़ने की आदत। अब ये सब करना है तो बुलेट ट्रेन में चढ़ पाना मुश्किल है।
घड़ी घड़ी जो सामने वाले से उलाहना देते हो कि गाड़ी स्लो चला रहा है। लेट कर दिया है। मुगलसराय में आधा घंटा खड़ा कर दिया। अब मोतिहारी पहुंचने में शाम हो जाएगा। बस छूट जाएगी। रात स्टेशन पर ही बिताना पड़ेगा। अब ये सब उलाहना देना बंद कर दो। देश में बुलेट ट्रेन चलने वाला है। यही सब बोलोगे तो बेईज्जती होगा देश का। थोड़ा कम्परोमाइज करना पड़ता है। थोड़ा टिप टाप से रहो। बुलेट ट्रेन में चलना है तो जरा अपने को बदलो क्योंकि देश बदल रहा है। वंदे मातरम बोलो और राष्ट्रभक्त बनो। बुलेट ट्रेन पुखरायां में नहीं रुकती।